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श्रीमद्भगवद्गीता सार: अध्याय 18 | Moksha Sanyas Yog | Shrimad Bhagwad Geeta Saar | MANOJ MISHRA

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????जय श्री कृष्ण???? श्रीमद्भगवद्गीता सार: श्रीमद्भगवद्गीता सार: अध्याय 18 | मोक्ष सन्यास योग | Moksha Sanyas Yog | Shrimad Bhagwad Geeta Saar | MANOJ MISHRA???? भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय १८ में मोक्ष सन्यास योग की परिभाषा को व्यक्त करते हैं | अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से सन्यास और त्याग की शिक्षा प्रदान करने का विनय करते हैं। इस अध्याय में संन्यास और त्याग के बीच के अंतर का वर्णन किया गया है। संन्यास ले लेना और त्याग करना ये दोनों शब्द सामान लगते हैं परन्तु ये दोनों भिन्न होते हैं । संन्यासी वह है जो गृहस्थ जीवन में भाग नहीं लेता और समाज को त्याग कर साधना का अभ्यास करता है। त्यागी वह है जो कर्म में संलग्न रहता है लेकिन कर्म-फल का भोग करने की इच्छा का त्याग करता है। कोई मनुष्य जब कर्मों के प्रति आसक्त ना रहकर उनके प्रति अनासक्त हो जाता है और वो उदासीनता के भाव में जीवन गुजारने लगता है तो वो संन्यास को धारण कर लेता है किन्तु मनुष्य जब अपने कर्मों की फलों की इच्छा का त्याग कर लेता है और स्वयं को अकर्ता मानकर बस कर्मों को किये जाता है ऐसा व्यक्ति त्यागी कहलाता है और यही त्याग की परिभाषा भी है। जो मनुष्य सन्यासी बन जाते हैं मान, सम्मान, प्रतिष्ठा, धन, संतान आदि के लिए अपने कर्मों का त्याग कर देते हैं परन्तु वे अपने शरीर के लिए नित्य कर्म करते रहते हैं अर्थात वे पूर्ण रूप से अपने कर्मों का त्याग नहीं कर पाते हैं परन्तु बुद्धिमान मनुष्य जब त्याग करता है तो वो केवल कर्मों से होने वाले फलों का त्याग करता है कर्म करना नहीं छोड़ता इसको ही सही अर्थों में त्याग करना कहते हैं निष्काम कर्म करने वाले मनुष्य ही त्याग करने वाला माना जाता है। त्यागी मनुष्य अपने कर्त्तव्य रुपी कर्मों को करना कभी नहीं छोड़ते हैं। श्री कृष्ण कहते हैं कर्मों को त्यागना अर्थात छोड़ देना सन्यास है जबकि कर्म करते हुए कर्मों के फलों की इच्छा को छोड़ देना त्याग कहलाता है। श्री कृष्ण दूसरे प्रकार के त्याग को श्रेष्ठ मानते हैं। वे परामर्श देते हैं कि यज्ञ, दान, तपस्या और कर्त्तव्य पालन संबंधी कार्यों का कभी त्याग नहीं करना चाहिए क्योंकि ये ज्ञानी को भी शुद्ध करते हैं। इनका संपादन केवल कर्त्तव्य पालन की दृष्टि से करना चाहिए क्योंकि इन कार्यों को कर्म फल की आसक्ति के बिना संपन्न करना आवश्यक होता है। इस अध्याय में यह कहा गया है कि ऐसे पूर्ण योगी भी भक्ति में तल्लीनता द्वारा अपनी पूर्णता का अनुभव करते हैं। इसलिए भगवान के दिव्य व्यक्तित्त्व के रहस्य को केवल मधुर भक्ति द्वारा जाना जा सकता है। इसके बाद श्रीकृष्ण अर्जुन को स्मरण कराते हैं कि भगवान सभी जीवों के हृदय में स्थित हैं और उनके कर्मों के अनुसार वे उनकी गति को निर्देशित करते हैं। यदि हम उनका स्मरण करते हैं और अपने सभी कर्म उन्हें समर्पित करते हैं तथा उनका आश्रय लेकर उन्हें अपना लक्ष्य बनाते हैं तब उनकी कृपा से हम सभी प्रकार की कठिनाईयों को पार कर लेंगे। लेकिन यदि हम अपने अभिमान से प्रेरित होकर अपनी इच्छानुसार कर्म करते है तब हम सफलता प्राप्त नहीं कर पाएंगे।

अंत में श्रीकृष्ण यह प्रकट करते हैं कि सभी प्रकार की धार्मिकता का त्याग करना और केवल भगवान की भक्ति के साथ-साथ उनके समक्ष शरणागत होना ही अति गुह्यतम ज्ञान है। तथापि यह ज्ञान उन्हें नहीं प्रदान करना चाहिए जो आडम्बर से ग्रसित हैं और नास्तिक हैं अर्थात् भक्त नहीं हैं, क्योंकि वे इसकी अनुचित व्याख्या करेंगे और इसका दुरूपयोग कर अनुत्तरदायिता से कर्मों का त्याग करेंगे। यदि हम यह गुह्य ज्ञान पात्र जीवात्मा को प्रदान करते है तब यह अति प्रेमायुक्त बन जाता है और भगवान को अति प्रसन्न करता है।

भगवद् गीता:-
भगवद् गीता एक महान ग्रन्थ है। युगों पूर्व लिखी यह रचना आज के धरातल पर भी सत्य साबित होती है। जो व्यक्ति नियमित गीता को पढ़ता या श्रवण करता है, उसका मन शांत बना रहता है। आज के कलयुग में भगवद् गीता पढ़ने से मनुष्य को अपनी समस्याओं का हल मिलता है आत्मिक शांति का अनुभव होता है। आज का मनुष्य जीवन की चिंताओं, समस्याओं, अनेक तरह के तनावों से घिरा हुआ है। यह ग्रन्थ भटके मनुष्यों को राह दिखाता है। मन को शांति मिलती है, काम, क्रोध, लोभ, मोह दूर होता है। गीता का अध्ययन करने वाला व्यक्ति धीरे धीरे कामवासना, क्रोध, लालच और मोह माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है। सच और झूठ का ज्ञान होता है। तो आइये हम सभी इस अद्भुत ज्ञान को प्राप्त करें | भगवद् गीता के इस सार को श्रवण करने से आशा है हम सभी को अवश्य आत्मज्ञान और आत्मिक सुख की अनुभूति होगी | आशा है हमारा ये प्रयास आप सभी को लाभ प्रदान करेगा |
Video Link: https://youtu.be/1w7JfeI1Abw
Bhagwad Geeta All Parts: https://www.youtube.com/playlist?list=PLyXHXSHxLqKwXaL5dFkzLOVU_9sYQIiUZ
Geeta Updesh: श्रीमद्भगवद्गीता सार: अध्याय 18, Moksha Sanyas Yog | Shrimad Bhagwad Geeta Saar, MANOJ MISHRA
Vaachak: Manoj Mishra
Music: Shardul Rathod
Lyrics: Traditional
Mixed & Mastered By: Dattatray Narvekar
Album: Shrimad Bhagwad Geeta Saar - Adhyay 18 - Moksha Sanyas Yog
Music Label: T-Series

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Category
टी-सीरीज़ - T-Series
Tags
Geeta Saar, Geeta Saar In Hindi Full, Geeta Saar In Mahabharat Full
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