श्रीमद्भगवद्गीता सार: अश्रीमद्भगवद्गीता सार:अध्याय 13 | क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग Kshetra Kshetragya Vibhag Yog | Shrimad Bhagwad Geeta Saar | MANOJ MISHRA???? भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 13 में क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग की परिभाषा को व्यक्त करते हैं | ज्ञान प्रदाता से सम्मान सहित ज्ञान प्राप्त करना चाहिए | अर्जुन श्री कृष्ण से क्षेत्र क्षेत्रज्ञ के ज्ञान के विषय में जानना चाहते हैं श्री कृष्ण कहते हैं की हे अर्जुन मनुष्य के शरीर को क्षेत्र कहा जाता है जो इस क्षेत्र को जानने वाला होता है वो क्षेत्रज्ञ कहलाता है हमारा शरीर कर्मक्षेत्र कहलाता है क्योंकि हम अपने सभी कर्म इस शरीर के द्वारा ही करते है किसी से ईर्ष्या, किसी से प्रेम, किसी से झगड़ा और किसी का अहित इस शरीर द्वारा ही किया जाता है और इस संसार में हर कार्य मनुष्य इस शरीर के माध्यम से ही करता है ऐसा कोई कार्य नहीं है जो ये शरीर नहीं कर सकता है और इस शरीर को जो भली प्रकार से जानते है वो ज्ञानी क्षेत्रज्ञ बन जाते है ऐसे मनुष्य अपने शरीर के द्वारा किसी का अहित नहीं करते है बल्कि सदैव दूसरों के कल्याण के बारे में सोचते है ऐसे मनुष्य महाज्ञानी होते है तथा अपना सारा कर्म केवल और केवल दूसरों के हित में लगते है सदैव सत्कर्म के लिए तत्पर रहते है दुष्कर्मों से कोसों दूर होते है एवं अपने सारे कर्मों का फल ईश्वर को सौंप देते हैं वे स्वयं कर्मों से मुक्त हो जाते है। साथियों भगवान श्री कृष्ण अपने इस उपदेश में बढ़ा भेद खोल कर कहना चाहते हैं की सभी लोकों में एक वही ऐसे हैं जो मनुष्य के इस शरीर रुपी क्षेत्र के संपूर्ण ज्ञाता हैं ! गवान श्री कृष्ण अर्जुन को अपने इस उपदेश में क्षेत्र क्षेत्रज्ञ के सभी गुणों और विकारों से सम्बंधित ज्ञान के विषय में बताते हैं की हे अर्जुन यह क्षेत्र जो पांच महाभूतों, अहंकार, बुद्धि, प्रकृति के तीन गुणों, १० इन्द्रियों, एक मन पांच इन्द्रियों के विषय के साथ इच्छा, द्वेष, सुख, दुःख, चेतना और धारण वाला है ये सभी विकार एक समूह के रूप में शरीर में होते हैं। इसमें शरीर के विकारों का वर्णन करते हैं जिसमें ईर्ष्या द्वेष अहंकार
इच्छा घृणा दुःख सुख रजोगुण तमोगुण चेतना ये सभी क्षेत्र के गुण और विकार हैं I हमारा शरीर पांच भूतों से निर्मित है इसलिए इस संसार में रहते हुए इस शरीर में प्रकृति के अनुसार परिवर्तन होते रहते हैं। किन्तु इन परिवर्तनों से हमारी आत्मा पर कोई प्रभाव नहीं होता है क्योंकि आत्मा एक सूक्ष्म ऊर्जा है। शरीर और आत्मा की विभिन्नता को पहचानना परम आवश्यक है जो मनुष्य इस भेद को जान लेता है वही परमात्मा का अंश कहलाता है वो अपने शरीर से नहीं बल्कि अपनी आत्मा से पहचाना जाता है |
भगवद् गीता:-
भगवद् गीता एक महान ग्रन्थ है। युगों पूर्व लिखी यह रचना आज के धरातल पर भी सत्य साबित होती है। जो व्यक्ति नियमित गीता को पढ़ता या श्रवण करता है, उसका मन शांत बना रहता है। आज के कलयुग में भगवद् गीता पढ़ने से मनुष्य को अपनी समस्याओं का हल मिलता है आत्मिक शांति का अनुभव होता है। आज का मनुष्य जीवन की चिंताओं, समस्याओं, अनेक तरह के तनावों से घिरा हुआ है। यह ग्रन्थ भटके मनुष्यों को राह दिखाता है। गीता को, धर्म-अध्यात्म समझाने वाला अनमोल काव्य कहा जा सकता है। सभी शास्त्रों का सार एक स्थान पर कहीं एक साथ मिलता हो, तो वह स्थान है-गीता। गीता रूपी ज्ञान नदी में स्नान कर अज्ञानी सद्ज्ञान को प्राप्त करता है। पापी पाप-ताप से मुक्त होकर संसार सागर को पार कर जाता है। मन को शांति मिलती है, काम, क्रोध, लोभ, मोह दूर होता है। गीता का अध्ययन करने वाला व्यक्ति धीरे धीरे कामवासना, क्रोध, लालच और मोह माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है। आज भी राजनीतिक या सामाजिक संकट के समय लोग इसका सहारा लेते हैं। मन नियंत्रण में रहता है। सच और झूठ का ज्ञान होता है। आत्मबल बढ़ता है। सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है तो आइये हम सभी इस अद्भुत ज्ञान को प्राप्त करें | भगवद् गीता के इस सार को श्रवण करने से आशा है हम सभी को अवश्य आत्मज्ञान और आत्मिक सुख की अनुभूति होगी | आशा है हमारा ये प्रयास आप सभी को लाभ प्रदान करेगा |
Video Link: https://youtu.be/N-35yByholU
Bhagwad Geeta All Parts: https://www.youtube.com/playlist?list=PLyXHXSHxLqKwXaL5dFkzLOVU_9sYQIiUZ
Geeta Updesh:???? श्रीमद्भगवद्गीता सार:अध्याय 13 | क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग Kshetra Kshetragya Vibhag Yog | Shrimad Bhagwad Geeta Saar | MANOJ MISHRA????
Vaachak: Manoj Mishra
Music: Shardul Rathod
Lyrics: Traditional
Mixed & Mastered By: Dattatray Narvekar
Album: ????श्रीमद्भगवद्गीता सार:अध्याय 13 | क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग Kshetra Kshetragya Vibhag Yog | Shrimad Bhagwad Geeta Saar | MANOJ MISHRA????
Music Label: T-Series
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इच्छा घृणा दुःख सुख रजोगुण तमोगुण चेतना ये सभी क्षेत्र के गुण और विकार हैं I हमारा शरीर पांच भूतों से निर्मित है इसलिए इस संसार में रहते हुए इस शरीर में प्रकृति के अनुसार परिवर्तन होते रहते हैं। किन्तु इन परिवर्तनों से हमारी आत्मा पर कोई प्रभाव नहीं होता है क्योंकि आत्मा एक सूक्ष्म ऊर्जा है। शरीर और आत्मा की विभिन्नता को पहचानना परम आवश्यक है जो मनुष्य इस भेद को जान लेता है वही परमात्मा का अंश कहलाता है वो अपने शरीर से नहीं बल्कि अपनी आत्मा से पहचाना जाता है |
भगवद् गीता:-
भगवद् गीता एक महान ग्रन्थ है। युगों पूर्व लिखी यह रचना आज के धरातल पर भी सत्य साबित होती है। जो व्यक्ति नियमित गीता को पढ़ता या श्रवण करता है, उसका मन शांत बना रहता है। आज के कलयुग में भगवद् गीता पढ़ने से मनुष्य को अपनी समस्याओं का हल मिलता है आत्मिक शांति का अनुभव होता है। आज का मनुष्य जीवन की चिंताओं, समस्याओं, अनेक तरह के तनावों से घिरा हुआ है। यह ग्रन्थ भटके मनुष्यों को राह दिखाता है। गीता को, धर्म-अध्यात्म समझाने वाला अनमोल काव्य कहा जा सकता है। सभी शास्त्रों का सार एक स्थान पर कहीं एक साथ मिलता हो, तो वह स्थान है-गीता। गीता रूपी ज्ञान नदी में स्नान कर अज्ञानी सद्ज्ञान को प्राप्त करता है। पापी पाप-ताप से मुक्त होकर संसार सागर को पार कर जाता है। मन को शांति मिलती है, काम, क्रोध, लोभ, मोह दूर होता है। गीता का अध्ययन करने वाला व्यक्ति धीरे धीरे कामवासना, क्रोध, लालच और मोह माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है। आज भी राजनीतिक या सामाजिक संकट के समय लोग इसका सहारा लेते हैं। मन नियंत्रण में रहता है। सच और झूठ का ज्ञान होता है। आत्मबल बढ़ता है। सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है तो आइये हम सभी इस अद्भुत ज्ञान को प्राप्त करें | भगवद् गीता के इस सार को श्रवण करने से आशा है हम सभी को अवश्य आत्मज्ञान और आत्मिक सुख की अनुभूति होगी | आशा है हमारा ये प्रयास आप सभी को लाभ प्रदान करेगा |
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Vaachak: Manoj Mishra
Music: Shardul Rathod
Lyrics: Traditional
Mixed & Mastered By: Dattatray Narvekar
Album: ????श्रीमद्भगवद्गीता सार:अध्याय 13 | क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग Kshetra Kshetragya Vibhag Yog | Shrimad Bhagwad Geeta Saar | MANOJ MISHRA????
Music Label: T-Series
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