????जय श्री कृष्ण???? श्रीमद्भगवद्गीता सार: आत्म संयम योग: अध्याय ६ - आत्म संयम योग ???? भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद भगवद गीता अध्याय 6 में आत्म संयम योग की परिभाषा को व्यक्त किया गया है। जो मनुष्य अपने कर्मों को बिना फल की कामना किये करता है वो सन्यासी के तुल्य होता है। मनुष्य को अपने कर्म बिना निजी स्वार्थ के साथ करना चाहिए तभी वो योगी कहलाता है | मनुष्य को समस्त भौतिक इच्छाओं का त्याग करते हुए कर्म करना चाहिए क्योंकि ऐसा ही मनुष्य परमगति को प्राप्त होता हैं अर्थात अपने लक्ष्य तक पहुँचता हैं। वो ही सही अर्थों में योग को प्राप्त करता है । ऐसे मनुष्य ही अपनी इच्छा शक्ति द्वारा धीरे धीरे अपनी कामनाओं का शमन कर देते हैं। अर्थात मानव अपनी शारीरिक और भौतिक वस्तुओं को प्राप्त करने का विचार त्याग दे तो हमारे सारे कर्म स्वतः ही सिद्ध हो जायेंगे और हम योग में स्तिथ हो जायेंगे। भगवान मुरलीधर महाराज अर्जुन से आगे कहते हैं इसीलिए हे अर्जुन संसार के सभी ज्ञानी और विवेकी मनुष्यों को चाहिए की वो अपने मन को संयम में रखते हुए ऐसे कर्म करें जिनके फल के प्राप्त होने पर अपने जन्म और मृत्यु के बंधन अर्थात आवन जावन से मुक्त हो जाएँ ताकि उनका उद्धार हो सके । जो मनुष्य योग साधना को समझ लेता है वो श्री कृष्ण को स्वतः ही प्राप्त कर लेता है ऐसा मनुष्य सांसारिक सुखों का त्याग कर भगवान की शरण में चला जाता है। मनुष्य को योगी बनने के लिए साधना करनी पड़ती है उत्तम चरित्र और शुद्ध मन के साथ अपनी साधना को करना पड़ता है जिसमें उसे किसी भी प्रकार के फल की कोई आकांक्षा नहीं होती है ऐसा मनुष्य मानव योनि के बाद की ८४ लाख योनियों में भटकता नहीं हैं उसकी आत्मा का कल्याण होता है तथा वो परम गति को प्राप्त करता हुआ सदा के लिए प्रभु की शरण में आ जाता है।
भगवद् गीता:-
भगवद् गीता एक महान ग्रन्थ है। युगों पूर्व लिखी यह रचना आज के धरातल पर भी सत्य साबित होती है। जो व्यक्ति नियमित गीता को पढ़ता या श्रवण करता है, उसका मन शांत बना रहता है। आज के कलयुग में भगवद् गीता पढ़ने से मनुष्य को अपनी समस्याओं का हल मिलता है आत्मिक शांति का अनुभव होता है। आज का मनुष्य जीवन की चिंताओं, समस्याओं, अनेक तरह के तनावों से घिरा हुआ है। यह ग्रन्थ भटके मनुष्यों को राह दिखाता है। गीता को, धर्म-अध्यात्म समझाने वाला अनमोल काव्य कहा जा सकता है। सभी शास्त्रों का सार एक स्थान पर कहीं एक साथ मिलता हो, तो वह स्थान है-गीता। गीता रूपी ज्ञान नदी में स्नान कर अज्ञानी सद्ज्ञान को प्राप्त करता है। पापी पाप-ताप से मुक्त होकर संसार सागर को पार कर जाता है। मन को शांति मिलती है, काम, क्रोध, लोभ, मोह दूर होता है। गीता का अध्ययन करने वाला व्यक्ति धीरे धीरे कामवासना, क्रोध, लालच और मोह माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है। आज भी राजनीतिक या सामाजिक संकट के समय लोग इसका सहारा लेते हैं। मन नियंत्रण में रहता है। सच और झूठ का ज्ञान होता है। आत्मबल बढ़ता है। सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है तो आइये हम सभी इस अद्भुत ज्ञान को प्राप्त करें | भगवद् गीता के इस सार को श्रवण करने से आशा है हम सभी को अवश्य आत्मज्ञान और आत्मिक सुख की अनुभूति होगी | आशा है हमारा ये प्रयास आप सभी को लाभ प्रदान करेगा |
Video Link: https://youtu.be/nQazPRmswQc
Bhagwad Geeta All Parts: https://www.youtube.com/playlist?list=PLyXHXSHxLqKwXaL5dFkzLOVU_9sYQIiUZ
Geeta Updesh: श्रीमद्भगवद्गीता सार: अध्याय ६ आत्म संयम योग | Shrimad Bhagwad Geeta Saar 6 | Gita Saar
Vaachak: Manoj Mishra
Music: Shardul Rathod
Lyrics: Traditional
Mix & Mastered By: Dattatray Narvekar
Album: श्रीमद्भगवद्गीता सार: अध्याय ६ आत्म संयम योग | Shrimad Bhagwad Geeta Saar 6 | Gita Saar
Music Label: T-Series
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