????????श्रीमद्भगवद्गीता का यह अध्याय हर एक को अवश्य ही श्रवण करना चाहिए इससे आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा जीवन को सरलता से समझने में सहायता मिलेगी। यकीनन मन को परम आनंद की प्राप्ति होगी शांति प्राप्त होगी। ईश्वर के प्रति आस्था में वृद्धि होगी अपने आपको परमात्मा के अधिक निकट महसूस करेंगे ????????
श्रीमद्भगवद्गीता सार: श्रीमद्भगवद्गीता सार: अध्याय 16 | देव असुर संपदा विभाग योग | Purushottam Yog | Shrimad Bhagwad Geeta Saar | MANOJ MISHRA???? भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय १६ में देव असुर संपदा विभाग योग की परिभाषा को व्यक्त करते हैं |
नंदलाल भगवान अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन संसार में दो प्रकार की प्रकृति के मनुष्य होते हैं एक तो जो दैवीय गुण वाली प्रकृति के साथ जन्म लेते हैं और दूसरे वो जो आसुरी गुणों वाली प्रकृति लेकर जन्म लेते हैं | मनुष्य को स्वयं को उन्नत करने के लिए तथा परम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इन सभी गुणों का श्रद्धापूर्वक आचरण करना चाहिए | इन सभी गुणों में सर्वप्रथम गुण निर्भयता है | जो मनुष्य अपने भय पर विजय प्राप्त कर लेता है उसका समग्र जीवन वर्तमान और भविष्य के सभी दुखों से मुक्त रहता है | दूसरा गुण आत्मशुद्धि है जिसमें सभी प्रकार से मन शुद्ध हो जाता है तीसरा ज्ञान योग है ये परमात्मा को प्राप्त करवाता है | चौथा गुण समर्पण का भाव अर्थात् दान, पांचवा गुण आत्मसंयम अर्थात् इंद्रियों को आधीन करना, छठा गुण यज्ञ परायणता अर्थात् नित्य कर्म करने का भाव, सातवां गुण अपने को जानना अर्थात् स्वाध्याय, आठवां गुण परमात्मा की प्राप्ति के लिए तपस्या और नवमा गुण सरलता | देवीय गुण वाला मनुष्य कभी भी किसी को कोई कष्ट नहीं देता है वो सदैव मानव कल्याण के लिए ही कर्म करता है और वाणी से मधुर और सदैव सत्य बोलता है क्रोध पर नियंत्रण रखता है किसी की भी निंदा न तो करता है ना सुनता है, प्राणियों पर दया का भाव रखता है, इंद्रियों को वश में रखता है और अपने कर्मों को बिना फल की आशा किए अनासक्त होकर कर्तव्य मानकर करता है | अहंकार नहीं करता और किसी भी कार्य को दृढ़ संकल्प मानकर करता है ऐसे मनुष्य में ईश्वरीय गुण होते हैं, देवीय गुणों वाला मनुष्य अपराध करने वालों को क्षमा कर देता है कोमल भाव रखता है संकट में भी धैर्य नहीं खोता है विचलित नहीं होता है सदैव शांत रहता है | वो कभी भी किसी से ईर्ष्या नहीं करता है सभी को समान रूप से देखता है सभी के साथ प्रेम स्नेह का आचरण रखता है सभी में परमात्मा को देखता है सभी को यथोचित सम्मान प्रदान करता है ऐसा मनुष्य ही परमात्मा को सही रूप में प्राप्त कर पाता है | इसके विपरीत आसुरी प्रवत्ति के मनुष्य पाखंडी, अभिमानी, क्रोधी, निष्ठुर और अज्ञानी होते हैं वो सदैव आसुरी अवगुणों से जकड़े रहते हैं इससे मुक्त नहीं हो पाते हैं ऐसे मनुष्य मोहमाया के बंधनों में बंधे रहते हैं दूसरों पर क्रोध व अत्याचार करते हैं ऐसे मनुष्य के अंदर दया एवं करुणा नही होती है वाणी कठोर होती है सदैव दूसरों से ईर्ष्या की भावना रखते हैं अहंकार करते हैं अपने आपको सबसे बड़ा सर्वोच्च मानते हुए दूसरों का अपमान करते रहते हैं उन्हें नीचा दिखाने का प्रयास करते रहते हैं और इसी आसक्ति को अपनी विजय मानते हुए जीवन जीते हैं | ऐसा मनुष्य धर्म का वहन नहीं करता सदैव अधर्म के मार्ग पर चलता रहता है और अंत में मृत्यु के बाद भी उसे शांति प्राप्त नहीं होती |
भगवद् गीता:-
भगवद् गीता एक महान ग्रन्थ है। युगों पूर्व लिखी यह रचना आज के धरातल पर भी सत्य साबित होती है। जो व्यक्ति नियमित गीता को पढ़ता या श्रवण करता है, उसका मन शांत बना रहता है। आज के कलयुग में भगवद् गीता पढ़ने से मनुष्य को अपनी समस्याओं का हल मिलता है आत्मिक शांति का अनुभव होता है। आज का मनुष्य जीवन की चिंताओं, समस्याओं, अनेक तरह के तनावों से घिरा हुआ है। यह ग्रन्थ भटके मनुष्यों को राह दिखाता है। सभी शास्त्रों का सार एक स्थान पर कहीं एक साथ मिलता हो, तो वह स्थान है-गीता। गीता रूपी ज्ञान नदी में स्नान कर अज्ञानी सद्ज्ञान को प्राप्त करता है। पापी पाप-ताप से मुक्त होकर संसार सागर को पार कर जाता है। मन को शांति मिलती है, काम, क्रोध, लोभ, मोह दूर होता है। गीता का अध्ययन करने वाला व्यक्ति धीरे धीरे कामवासना, क्रोध, लालच और मोह माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है। आज भी राजनीतिक या सामाजिक संकट के समय लोग इसका सहारा लेते हैं। मन नियंत्रण में रहता है। सच और झूठ का ज्ञान होता है। आत्मबल बढ़ता है। सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है तो आइये हम सभी इस अद्भुत ज्ञान को प्राप्त करें | भगवद् गीता के इस सार को श्रवण करने से आशा है हम सभी को अवश्य आत्मज्ञान और आत्मिक सुख की अनुभूति होगी | आशा है हमारा ये प्रयास आप सभी को लाभ प्रदान करेगा |
Video Link: https://youtu.be/lxa4wWZyBsE
Bhagwad Geeta All Parts: https://www.youtube.com/playlist?list=PLyXHXSHxLqKwXaL5dFkzLOVU_9sYQIiUZ
Geeta Updesh: ????अध्याय 16, Dev Asur Sampada Vibhag Yog, Shrimad Bhagwad Geeta Saar, MANOJ MISHRA????
Vaachak: Manoj Mishra
Music: Shardul Rathod
Lyrics: Traditional
Mixed & Mastered By: Dattatray Narvekar
Album: Shrimad Bhagwad Geeta Saar - Adhyay 16 - Dev Asur Sampada Vibhag Yog
Music Label: T-Series
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नंदलाल भगवान अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन संसार में दो प्रकार की प्रकृति के मनुष्य होते हैं एक तो जो दैवीय गुण वाली प्रकृति के साथ जन्म लेते हैं और दूसरे वो जो आसुरी गुणों वाली प्रकृति लेकर जन्म लेते हैं | मनुष्य को स्वयं को उन्नत करने के लिए तथा परम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इन सभी गुणों का श्रद्धापूर्वक आचरण करना चाहिए | इन सभी गुणों में सर्वप्रथम गुण निर्भयता है | जो मनुष्य अपने भय पर विजय प्राप्त कर लेता है उसका समग्र जीवन वर्तमान और भविष्य के सभी दुखों से मुक्त रहता है | दूसरा गुण आत्मशुद्धि है जिसमें सभी प्रकार से मन शुद्ध हो जाता है तीसरा ज्ञान योग है ये परमात्मा को प्राप्त करवाता है | चौथा गुण समर्पण का भाव अर्थात् दान, पांचवा गुण आत्मसंयम अर्थात् इंद्रियों को आधीन करना, छठा गुण यज्ञ परायणता अर्थात् नित्य कर्म करने का भाव, सातवां गुण अपने को जानना अर्थात् स्वाध्याय, आठवां गुण परमात्मा की प्राप्ति के लिए तपस्या और नवमा गुण सरलता | देवीय गुण वाला मनुष्य कभी भी किसी को कोई कष्ट नहीं देता है वो सदैव मानव कल्याण के लिए ही कर्म करता है और वाणी से मधुर और सदैव सत्य बोलता है क्रोध पर नियंत्रण रखता है किसी की भी निंदा न तो करता है ना सुनता है, प्राणियों पर दया का भाव रखता है, इंद्रियों को वश में रखता है और अपने कर्मों को बिना फल की आशा किए अनासक्त होकर कर्तव्य मानकर करता है | अहंकार नहीं करता और किसी भी कार्य को दृढ़ संकल्प मानकर करता है ऐसे मनुष्य में ईश्वरीय गुण होते हैं, देवीय गुणों वाला मनुष्य अपराध करने वालों को क्षमा कर देता है कोमल भाव रखता है संकट में भी धैर्य नहीं खोता है विचलित नहीं होता है सदैव शांत रहता है | वो कभी भी किसी से ईर्ष्या नहीं करता है सभी को समान रूप से देखता है सभी के साथ प्रेम स्नेह का आचरण रखता है सभी में परमात्मा को देखता है सभी को यथोचित सम्मान प्रदान करता है ऐसा मनुष्य ही परमात्मा को सही रूप में प्राप्त कर पाता है | इसके विपरीत आसुरी प्रवत्ति के मनुष्य पाखंडी, अभिमानी, क्रोधी, निष्ठुर और अज्ञानी होते हैं वो सदैव आसुरी अवगुणों से जकड़े रहते हैं इससे मुक्त नहीं हो पाते हैं ऐसे मनुष्य मोहमाया के बंधनों में बंधे रहते हैं दूसरों पर क्रोध व अत्याचार करते हैं ऐसे मनुष्य के अंदर दया एवं करुणा नही होती है वाणी कठोर होती है सदैव दूसरों से ईर्ष्या की भावना रखते हैं अहंकार करते हैं अपने आपको सबसे बड़ा सर्वोच्च मानते हुए दूसरों का अपमान करते रहते हैं उन्हें नीचा दिखाने का प्रयास करते रहते हैं और इसी आसक्ति को अपनी विजय मानते हुए जीवन जीते हैं | ऐसा मनुष्य धर्म का वहन नहीं करता सदैव अधर्म के मार्ग पर चलता रहता है और अंत में मृत्यु के बाद भी उसे शांति प्राप्त नहीं होती |
भगवद् गीता:-
भगवद् गीता एक महान ग्रन्थ है। युगों पूर्व लिखी यह रचना आज के धरातल पर भी सत्य साबित होती है। जो व्यक्ति नियमित गीता को पढ़ता या श्रवण करता है, उसका मन शांत बना रहता है। आज के कलयुग में भगवद् गीता पढ़ने से मनुष्य को अपनी समस्याओं का हल मिलता है आत्मिक शांति का अनुभव होता है। आज का मनुष्य जीवन की चिंताओं, समस्याओं, अनेक तरह के तनावों से घिरा हुआ है। यह ग्रन्थ भटके मनुष्यों को राह दिखाता है। सभी शास्त्रों का सार एक स्थान पर कहीं एक साथ मिलता हो, तो वह स्थान है-गीता। गीता रूपी ज्ञान नदी में स्नान कर अज्ञानी सद्ज्ञान को प्राप्त करता है। पापी पाप-ताप से मुक्त होकर संसार सागर को पार कर जाता है। मन को शांति मिलती है, काम, क्रोध, लोभ, मोह दूर होता है। गीता का अध्ययन करने वाला व्यक्ति धीरे धीरे कामवासना, क्रोध, लालच और मोह माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है। आज भी राजनीतिक या सामाजिक संकट के समय लोग इसका सहारा लेते हैं। मन नियंत्रण में रहता है। सच और झूठ का ज्ञान होता है। आत्मबल बढ़ता है। सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है तो आइये हम सभी इस अद्भुत ज्ञान को प्राप्त करें | भगवद् गीता के इस सार को श्रवण करने से आशा है हम सभी को अवश्य आत्मज्ञान और आत्मिक सुख की अनुभूति होगी | आशा है हमारा ये प्रयास आप सभी को लाभ प्रदान करेगा |
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Music: Shardul Rathod
Lyrics: Traditional
Mixed & Mastered By: Dattatray Narvekar
Album: Shrimad Bhagwad Geeta Saar - Adhyay 16 - Dev Asur Sampada Vibhag Yog
Music Label: T-Series
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