????जय श्री कृष्ण???? श्रीमद्भगवद्गीता सार: अक्षर ब्रह्म योग: अध्याय ८ - अक्षर ब्रह्म योग???? भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 8 में अक्षर ब्रह्म योग की परिभाषा को व्यक्त किया है। इसमें यह वर्णन किया गया है कि मृत्यु के पश्चात आत्मा के गन्तव्य का निर्धारण किस प्रकार से होता है। अर्थात मृत्यु के बाद आत्मा कहाँ जाती है। देह का त्याग करते समय यदि हम भगवान का स्मरण करते हैं तब हम निश्चित रूप से उन्हें पा लेंगे। इसलिए अपने दैनिक कार्यों को सम्पन्न करने के साथ-साथ हमें सदैव उनकी विशेषताओं, गुणों और दिव्य लीलाओं का चिन्तन करना चाहिए। परम अविनाशी सत्ता को ब्रह्म कहा जाता है। किसी मनुष्य की अपनी आत्मा को अध्यात्म कहा जाता है। प्राणियों के दैहिक व्यक्तित्व से संबंधित कर्मों और उनकी विकास प्रक्रिया को कर्म या साकाम कर्म कहा जाता है।
भौतिक अभिव्यक्ति जो निरन्तर परिवर्तित होती रहती है उसे अधिभूत कहते हैं। भगवान का विश्व रूप जो इस सृष्टि में देवताओं पर भी शासन करता है उसे अधिदैव कहते हैं। सभी प्राणियों के हृदय में स्थित, श्री कृष्ण परमात्मा अधियज्ञ या सभी यज्ञों के स्वामी हैं। श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं की वे जो शरीर त्यागते समय मेरा स्मरण करते हैं, वे मेरे समीप ही आएँगे। इस संबंध में निश्चित रूप से कोई संदेह नहीं है। मृत्यु के समय शरीर छोड़ते हुए मनुष्य जिसका स्मरण करता है वह उसी गति को प्राप्त होता है क्योंकि वह सदैव ऐसे चिन्तन में लीन रहता है। इसलिए सदा मेरा स्मरण करो और युद्ध लड़ने के अपने कर्त्तव्य का भी पालन करो, अपना मन और बुद्धि मुझे समर्पित करो तब तुम निश्चित रूप से मुझे पा लोगे, इसमें कोई संदेह नहीं है। जो देह त्यागते समय मेरा स्मरण करता है और पवित्र अक्षर ''ॐ'' का उच्चारण करता है वह परम गति को प्राप्त करता है।
मृत्यु के समय मनुष्य को शरीर के समस्त द्वारों को बंद कर मन को हृदय स्थल पर स्थिर करते हुए और प्राण वायु को सिर पर केन्द्रित करते हुए दृढ़ यौगिक चिन्तन में स्थित हो जाना चाहिए। ऐसे योगियों को निश्चित रूप से भगवान का परमधाम प्राप्त होता है।
भगवद् गीता:-
भगवद् गीता एक महान ग्रन्थ है। युगों पूर्व लिखी यह रचना आज के धरातल पर भी सत्य साबित होती है। जो व्यक्ति नियमित गीता को पढ़ता या श्रवण करता है, उसका मन शांत बना रहता है। आज के कलयुग में भगवद् गीता पढ़ने से मनुष्य को अपनी समस्याओं का हल मिलता है आत्मिक शांति का अनुभव होता है। आज का मनुष्य जीवन की चिंताओं, समस्याओं, अनेक तरह के तनावों से घिरा हुआ है। यह ग्रन्थ भटके मनुष्यों को राह दिखाता है। गीता को, धर्म-अध्यात्म समझाने वाला अनमोल काव्य कहा जा सकता है। सभी शास्त्रों का सार एक स्थान पर कहीं एक साथ मिलता हो, तो वह स्थान है-गीता। गीता रूपी ज्ञान नदी में स्नान कर अज्ञानी सद्ज्ञान को प्राप्त करता है। पापी पाप-ताप से मुक्त होकर संसार सागर को पार कर जाता है। मन को शांति मिलती है, काम, क्रोध, लोभ, मोह दूर होता है। गीता का अध्ययन करने वाला व्यक्ति धीरे धीरे कामवासना, क्रोध, लालच और मोह माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है। आज भी राजनीतिक या सामाजिक संकट के समय लोग इसका सहारा लेते हैं। मन नियंत्रण में रहता है। सच और झूठ का ज्ञान होता है। आत्मबल बढ़ता है। सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है तो आइये हम सभी इस अद्भुत ज्ञान को प्राप्त करें | भगवद् गीता के इस सार को श्रवण करने से आशा है हम सभी को अवश्य आत्मज्ञान और आत्मिक सुख की अनुभूति होगी | आशा है हमारा ये प्रयास आप सभी को लाभ प्रदान करेगा |
Video Link: https://youtu.be/pUeIcyS5mCw
Bhagwad Geeta All Parts: https://www.youtube.com/playlist?list=PLyXHXSHxLqKwXaL5dFkzLOVU_9sYQIiUZ
Geeta Updesh: श्रीमद्भगवद्गीता सार:अध्याय ८ अक्षर ब्रह्म योग | Shrimad Bhagwad Geeta Saar 8 Akshar Brahm Yog | Gita Saar | MANOJ MISHRA
Vaachak: Manoj Mishra
Music: Shardul Rathod
Lyrics: Traditional
Mixed & Mastered By: Dattatray Narvekar
Album: श्रीमद्भगवद्गीता सार:अध्याय ८ अक्षर ब्रह्म योग | Shrimad Bhagwad Geeta Saar 8 Akshar Brahm Yog | Gita Saar | MANOJ MISHRA
Music Label: T-Series
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भौतिक अभिव्यक्ति जो निरन्तर परिवर्तित होती रहती है उसे अधिभूत कहते हैं। भगवान का विश्व रूप जो इस सृष्टि में देवताओं पर भी शासन करता है उसे अधिदैव कहते हैं। सभी प्राणियों के हृदय में स्थित, श्री कृष्ण परमात्मा अधियज्ञ या सभी यज्ञों के स्वामी हैं। श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं की वे जो शरीर त्यागते समय मेरा स्मरण करते हैं, वे मेरे समीप ही आएँगे। इस संबंध में निश्चित रूप से कोई संदेह नहीं है। मृत्यु के समय शरीर छोड़ते हुए मनुष्य जिसका स्मरण करता है वह उसी गति को प्राप्त होता है क्योंकि वह सदैव ऐसे चिन्तन में लीन रहता है। इसलिए सदा मेरा स्मरण करो और युद्ध लड़ने के अपने कर्त्तव्य का भी पालन करो, अपना मन और बुद्धि मुझे समर्पित करो तब तुम निश्चित रूप से मुझे पा लोगे, इसमें कोई संदेह नहीं है। जो देह त्यागते समय मेरा स्मरण करता है और पवित्र अक्षर ''ॐ'' का उच्चारण करता है वह परम गति को प्राप्त करता है।
मृत्यु के समय मनुष्य को शरीर के समस्त द्वारों को बंद कर मन को हृदय स्थल पर स्थिर करते हुए और प्राण वायु को सिर पर केन्द्रित करते हुए दृढ़ यौगिक चिन्तन में स्थित हो जाना चाहिए। ऐसे योगियों को निश्चित रूप से भगवान का परमधाम प्राप्त होता है।
भगवद् गीता:-
भगवद् गीता एक महान ग्रन्थ है। युगों पूर्व लिखी यह रचना आज के धरातल पर भी सत्य साबित होती है। जो व्यक्ति नियमित गीता को पढ़ता या श्रवण करता है, उसका मन शांत बना रहता है। आज के कलयुग में भगवद् गीता पढ़ने से मनुष्य को अपनी समस्याओं का हल मिलता है आत्मिक शांति का अनुभव होता है। आज का मनुष्य जीवन की चिंताओं, समस्याओं, अनेक तरह के तनावों से घिरा हुआ है। यह ग्रन्थ भटके मनुष्यों को राह दिखाता है। गीता को, धर्म-अध्यात्म समझाने वाला अनमोल काव्य कहा जा सकता है। सभी शास्त्रों का सार एक स्थान पर कहीं एक साथ मिलता हो, तो वह स्थान है-गीता। गीता रूपी ज्ञान नदी में स्नान कर अज्ञानी सद्ज्ञान को प्राप्त करता है। पापी पाप-ताप से मुक्त होकर संसार सागर को पार कर जाता है। मन को शांति मिलती है, काम, क्रोध, लोभ, मोह दूर होता है। गीता का अध्ययन करने वाला व्यक्ति धीरे धीरे कामवासना, क्रोध, लालच और मोह माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है। आज भी राजनीतिक या सामाजिक संकट के समय लोग इसका सहारा लेते हैं। मन नियंत्रण में रहता है। सच और झूठ का ज्ञान होता है। आत्मबल बढ़ता है। सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है तो आइये हम सभी इस अद्भुत ज्ञान को प्राप्त करें | भगवद् गीता के इस सार को श्रवण करने से आशा है हम सभी को अवश्य आत्मज्ञान और आत्मिक सुख की अनुभूति होगी | आशा है हमारा ये प्रयास आप सभी को लाभ प्रदान करेगा |
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Album: श्रीमद्भगवद्गीता सार:अध्याय ८ अक्षर ब्रह्म योग | Shrimad Bhagwad Geeta Saar 8 Akshar Brahm Yog | Gita Saar | MANOJ MISHRA
Music Label: T-Series
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