प्रस्तुत है 'हनुमान चालीसा' (हिंदी लिरिक्स के साथ), 'शंकर महादेवन और अजय' की खूबसूरत आवाज़ में | श्री हनुमान जी आपकी झोली खुशियों से भर दे । बजरंग बलि की जय |
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गाने का श्रेय :
गायकों: शंकर महादेवन, अजय
संगीत निर्देशक: अजय-अतुल
गीत: परंपरागत
फ़िल्म: वाह! लाइफ हो तोह ऐसी!
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अर्थ और फायदे :
'हनुमान चालीसा' तुलसीदास की अवधी में लिखी एक काव्यात्मक कृति है, जिसमें प्रभु राम के महान भक्त हनुमान के गुणों एवं कार्यों का चालीस चौपाइयों में वर्णन है।
'हनुमान चालीसा' से लाभ :
1) 'हनुमान चालीसा' का पाठ आपको डर और तनाव से छुटकारा दिलाने में बेहद कारगर है।
किसी भी प्रकार की समस्या या अनजाने में उपजा तनाव भी 'हनुमान चालीसा' पाठ से दूर हो सकता है।
2) हर प्रकार की बीमारी या परेशानी, को दूर करने के लिए 'हनुमान चालीसा' का पाठ एक उत्तम उपाय है।
इसके लिए प्रतिदिन या फिर मंगलवार और शनिवार 'हनुमान चालीसा' का पाठ सर्वोत्तम है।
3) 'हनुमान चालीसा' में बजरंग बली की इस प्रकार स्तुति की गई है उससे न केवल आपका डर एवं तनव दूर होता है बल्कि आपके अंदर आत्मविश्वास का संचार भी होता है।
4) हनुमान जी को बल, बुद्धि और विद्या के दाता कहा जाता है, इसलिए 'हनुमान चालीसा' का प्रतिदिन पाठ करना आपकी स्मरण शक्ति और बुद्धि में वृद्धि करता है।
5) 'हनुमान चालीसा' वर्णन के अनुसार इसका नित्य पठन करने से किसी प्रकार की शारीरिक बाधा या जैसे- भूत, प्रेत संबंधित व्याधियां नहीं होती और आप मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हैं।
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हनुमान चालीसा' के लिरिक्स :
दोहा :
श्रीगुरु चरन सरोज रज,
निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु,
जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके,
सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं,
हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई :
(जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।) 2
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनी पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
(जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।) 2
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेउ साजे।
(जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।) 2
(शंकर सुवन केसरी नन्दन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।) 2
(विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।) 2
(प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।) 2
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे।।
(जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।) 2
लाये संजीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो यश गावैं।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते।।
(जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।) 2
(तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।। ) 2
(तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।) 2
(जुग सहस्र योजन पर भानू। ) 2
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँधि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
(जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।) 2
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक ते काँपे।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।
(जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।) 2
(संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।) 2
(सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा। ) 2
(और मनोरथ जो कोई लावै।) 2
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु सन्त के तुम रखवारे।
असुर निकन्दन राम दुलारे।।
(जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।) 2
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै।।
अन्त काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बन्दि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।
(जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।) 2
दोहा :
पवनतनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित,
हृदय बसहु सुर भूप।।
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अर्थ और फायदे :
'हनुमान चालीसा' तुलसीदास की अवधी में लिखी एक काव्यात्मक कृति है, जिसमें प्रभु राम के महान भक्त हनुमान के गुणों एवं कार्यों का चालीस चौपाइयों में वर्णन है।
'हनुमान चालीसा' से लाभ :
1) 'हनुमान चालीसा' का पाठ आपको डर और तनाव से छुटकारा दिलाने में बेहद कारगर है।
किसी भी प्रकार की समस्या या अनजाने में उपजा तनाव भी 'हनुमान चालीसा' पाठ से दूर हो सकता है।
2) हर प्रकार की बीमारी या परेशानी, को दूर करने के लिए 'हनुमान चालीसा' का पाठ एक उत्तम उपाय है।
इसके लिए प्रतिदिन या फिर मंगलवार और शनिवार 'हनुमान चालीसा' का पाठ सर्वोत्तम है।
3) 'हनुमान चालीसा' में बजरंग बली की इस प्रकार स्तुति की गई है उससे न केवल आपका डर एवं तनव दूर होता है बल्कि आपके अंदर आत्मविश्वास का संचार भी होता है।
4) हनुमान जी को बल, बुद्धि और विद्या के दाता कहा जाता है, इसलिए 'हनुमान चालीसा' का प्रतिदिन पाठ करना आपकी स्मरण शक्ति और बुद्धि में वृद्धि करता है।
5) 'हनुमान चालीसा' वर्णन के अनुसार इसका नित्य पठन करने से किसी प्रकार की शारीरिक बाधा या जैसे- भूत, प्रेत संबंधित व्याधियां नहीं होती और आप मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हैं।
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श्रीगुरु चरन सरोज रज,
निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु,
जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके,
सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं,
हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई :
(जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।) 2
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनी पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
(जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।) 2
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेउ साजे।
(जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।) 2
(शंकर सुवन केसरी नन्दन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।) 2
(विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।) 2
(प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।) 2
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे।।
(जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।) 2
लाये संजीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो यश गावैं।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते।।
(जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।) 2
(तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।। ) 2
(तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।) 2
(जुग सहस्र योजन पर भानू। ) 2
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँधि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
(जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।) 2
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक ते काँपे।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।
(जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।) 2
(संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।) 2
(सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा। ) 2
(और मनोरथ जो कोई लावै।) 2
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु सन्त के तुम रखवारे।
असुर निकन्दन राम दुलारे।।
(जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।) 2
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै।।
अन्त काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बन्दि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।
(जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।) 2
दोहा :
पवनतनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित,
हृदय बसहु सुर भूप।।
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- टी-सीरीज़ - T-Series
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